मेरा नाम महेश है, मेरी उम्र 26 साल की है। मेरे बड़े भाई जो मेरे से दो साल बड़े थे। उन की शादी एक साल पहले ही हुई थी। कुछ समय पहले उन की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो गयी। हमारे सारे परिवार पर दूखों का पहाड़ टूट पड़ा। मेरी भाभी जी की तो मानो सारी दूनिया ही तहस-नहस हो गयी थी। हम सब उन के दूख से बहुत दूखी थे लेकिन कोई भी इस दूख की घड़ी में उन की सहायता नहीं कर पा रहा था।
मैं भी इस स्थिति में अपने आप को बहुत असहाय पाता था। हमेशा चहकने वाली भाभी जी अचानक खामोश हो गयी थी। मेरे माता-पिता भी अपने पुत्र के जाने के दूख को भुल कर अपनी बहु के दूख के कारण दूखी रहने लग गये। ऐसा लगता था कि हमारे हँसते-खेलते परिवार को मानो किसी की नजर लग गयी थी। खुशियाँ शायद हमारे घर का पता भुल गयी थी।
इसी सब के बीच मेरी नियुक्ति भी उच्च सरकारी पद पर हो गयी थी। इस बात की परिवार में किसी को कोई खुशी नहीं थी। सब भाई के निधन के दूख में डुबें थे और उस के जाने के बाद उस की विधवा के दूख के कारण और अधिक दूखी हो रहे थे। इसी माहौल में, मैं अपने पद के लिये ट्रेनिग लेने चला गया। मेरा जाना जरुरी था।
तीन महीने बाद जब ट्रेनिग से वापस घर आया तो माहौल उतना ही गमगीन था। किसी को इस गम से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। मेरी नियुक्ति मेरे शहर में ही हुई थी इस लिये मुझे ज्यादा परेशानी नहीं हो रही थी। लेकिन भाई के इस तरह अचानक चले जाने का दूख दूर नहीं हो रहा था। समय के साथ यह दूख कम होगा यह तो हम सब जानते थे लेकिन उस के जाने के दूख में समय काटना भी मुश्किल हो रहा था हम सब के लिये।
मैं और माता-पिता पुरी कोशिश करते थे कि भाभी जी अपने दूख को भुल जाये लेकिन उन के चेहरे पर छाई उदासी दूर नहीं हो पा रही थी। हमारी कई कोशिशें बेकार हो चुकी थी। ऐसे में भाभी जी के माता-पिता जी हमारे घर आये और भाभी जी को साथ लेकर चले गये। भाभी जी जाना नहीं चाहती थी लेकिन माँ ने जोर दिया कि शायद जगह बदलने से उस का मन बहल जाये। माँ की बात मान कर वह अपने मायके चली गयी। लेकिन वहाँ भी उन का दिल नहीं लगा और वह कुछ ही दिनों में वापस आ गयी। उन को छोड़ने उन के माता-पिता ही आये थे।
शाम को मैं जब ऑफिस से वापस आया तो भाभी जी के माता-पिता जी से मेरी मुलाकात हुई। रात को खाना खाने के बाद सारा परिवार, माँ, पिता जी, भाभी जी, उनकी माता जी और पिता जी एक साथ बैठे थे। मैं भी सब के साथ ही बैठा था। तभी माँ नें मुझ से पुछा कि महेश तुम से कुछ बात करनी है। मैंने कहा कि आप कुछ भी पुछ सकती है,आप को किस ने रोका है? माँ कुछ हिचकी और फिर बोली कि बहुत जरुरी बात है।
मैंने कहा कि आप को अधिकार है कुछ भी पुछने का। अब पिता जी ने बात पकड़ी और वह बोले कि हम चाहते थे कि तेरे भाई के जाने के बाद घर में उदासी छा गयी है, लगता है की घर में कोई रौनक ही नहीं है। तुम्हारी नौकरी भी लग गयी है इस लिये हम दोनों की इच्छा है कि अब तुम शादी कर लो। मैंने कहा कि जैसी आप की इच्छा, जैसा आप को सही लगे। माँ बोली कि वैसे हमें पता है कि तुम्हारी कोई लड़की दोस्त नहीं है लेकिन फिर भी अगर तुम कुछ कहना चाहते हो तो बताओ?
मेरी कोई महिला मित्र नहीं है, आप लड़की पसन्द कर लो। मेरी बात सुन कर माँ के चेहरे पर संतोष छा गया। कमरे में शांति छा गयी। कुछ देर बात माँ बोली कि मेरी, तेरे पिता जी की इच्छा है कि तेरी शादी माधवी के साथ कर दी जाये। यह सुन कर मैं हैरान रह गया। माधवी मेरी भाभी जी का नाम है। मेरे चेहरे पर छाई हैरानी को देख कर माँ बोली कि हम सब ने बहुत सोच-समझ कर यह फैसला किया है कि माधवी का विवाह तुम्हारे साथ कर दिया जाये।
वह हमारी बहुत सेवा करती है, इसी घर का हिस्सा है, उस के सामने सारा जीवन पड़ा है। विधवा का जीवन उस के लिये नहीं है। इतनी बढ़िया लड़की तुम्हारे लिये ढुढ़ने पर भी नहीं मिलेगी। जाने वाला चला गया है, लेकिन जो यहाँ है उन को पुरा जीवन जीना है। यह कह कर माँ चुप हो गयी।
मैंने कुछ देर चुप रह कर कहा कि भाभी जी की जिम्मेदारी मेरी है। किसी को इस संबंध में कोई शक नहीं होना चाहिये। भाभी जी को मैं सारे जीवन अपने साथ ही रखुँगा। वह मेरा ही हिस्सा है। मेरा परिवार है। हम आप सब में से एक है।
मेरी बात सुन कर भाभी जी के पिता जी बोले कि तुम्हारी बात पर हम सब को विश्वास है कोई शंका नहीं है लेकिन माधवी अभी जवान है, सारा जीवन उस के सामने है, तुम जो सब कुछ उस के लिये करोगें, वह सब उस से विवाह करने के बाद अपने आप हो जायेगा। उस का जीवन सुधर जायेगा। परिवार में खुशियां फिर से वापस आ जायेगी। हम भी उस की तरफ से निश्चित हो जायेगें।
मुझे चुप देख कर भाभी जी की माँ बोली कि बेटा तुम्हारे विचार बहुत उच्च है लेकिन हमारा समाज ऐसा नही है, विधवा भाभी के साथ जीवन बिताना आसान नही है। बहुत सी समस्याओं का सामना तुम को और माधवी को करना पड़ेगा। यही सब सोच-विचार करके हम सब ने यह फैसला किया है कि तुम्हारा विवाह माधवी के साथ कर दिया जाये।
मैंने माँ से पुछा कि आप ने इस संबंध में भाभी जी से बात कर ली है। मेरी बात पर माँ भाभी जी की तरफ देख कर बोली कि हमने पहले उस से बात की है उसे समझाया है। उस को समझा पाना बहुत कठिन था, लेकिन हम सब ने तुम दोनों से अधिक दुनिया देखी है और जो कुछ कर रहे है उस में ही तुम सब का सुख है। तेरी भाभी ने बहुत सी बातें हमें बतायी है, जो उस के दष्टिकोण से सही थी, लेकिन जब हम ने व्यवाहारिक पक्ष उसे समझाया तो वह इस विवाह के लिये राजी हो गयी है। अब तेरी बारी है।
मेरे मन में विचारों का झंझावात चल रहा था, कल तक जिस भाभी जी को में आदर की दृष्टि से देखता था, उस से विवाह करना, उस के साथ रहना, मन को समझ नहीं आ रहा था, मन कुछ भी समझने को तैयार नहीं हो रहा था।
लेकिन मन के एक कोने में अपने बड़ों की बात की वास्तविकता भी समझ आ रही थी। विधवा की देखभाल करना सारे जीवन की जिम्मेदारी लेना, कहना बहुत आसान है लेकिन वास्तविकता में बहुत कठिन कार्य है। भविष्य में क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है। मेरी ही हम उम्र होने के कारण शादी में कोई बाधा तो नहीं थी। मन की परेशानी की बात अलग थी।
मुझे चुप देख कर माँ और पिता जी बोले कि तुम बताओ तुम्हें क्या परेशानी है?
कोई परेशानी नहीं है, अगर आप सब और भाभी जी तैयार है तो मैं भी तैयार हूँ
मेरी इस बात पर माँ बोली कि अगर तुझे कुछ समय चाहिये तो समय ले ले, सोच समझ कर अपना जबाव देना। मैंने माँ से कहा कि आप सब भी तो हम बच्चों के हित में ही सोच रहे है तो फिर इस संबंध में और क्या सोचना। जो आप सब ने सोचा है वह हम दोनों के हित में है ऐसा मेरा मानना है।
मेरी बात सुन कर माँ ने भाभी जी की माँ को गले लगा लिया। पिता जी ने भाभी जी के पिता को गले लगा लिया और भाभी जी और मैं अकेले खड़े रहे।
मैंने भाभी जी को संबोधित करके पुछा कि आप की सहमति भी मुझे पता चलनी चाहिये, भाभी जी ने कहा कि आप सब ने जो सोचा है वह मेरे लिये भी सही है। मैं भी आप के विचारों का समर्थन करती हूँ कि हमारे बड़े जो कुछ हमारे लिये सोचते है उसी में हमारा हित है।
भाभी जी ने भी अपनी सहमति दर्शा दी थी। अब यह संबंध पक्का हो गया था। लेकिन मैं मन ही मन में जानता था कि अभी आगे इस संबंध में बहुत बाधायें आने वाली है।